आखों में बसे यह ख़्वाब हैं क्यों
पलकों में बसे यह आस हैं क्यों
एक धुंधली मीठी सी हो जैसी
पर वक़्त के साथ थोड़ी बदलती भी हैं यह न जाने क्यों
आँखों से ओझल कुछ बातें हैं जो
मन में बसे कुछ चाहतें भी हो वोह
यू तो कभी मिले न मिले
पर ख्वाबो में ही यू - नजर आते हैं क्यों
क्या हमे दिखता कोई झूट हैं !
क्या हमे बहकाता कोई युही फ़िज़ूल हैं!
कर देता आँखों से ओझल - कोसो दूर हैं !
पर
कुछ पेचीदे जवाब भी देते यह ख़्वाब हैं
कुछ पहेलिया सुलजाती भी यह ख़्वाब हैं
कुछ मीठ यादें बन कर बस जाते झेहेंन में
न समझे आते कहाँ से और बनाता कोन यह ख़्वाब हैं !
- Kiran Hegde